Sindhutai Sapkal(social worker)Biography in Hindi | सिंधुताई सपकाल का जीवन परिचय | Sindhutai Sapkal ka Jeevan Parichay in Hindi
सिंधुताई सपकाल एक भारतीय समाज सुधारक हैं. जिन्हें “अनाथ बच्चों की माँ” के रूप में जाना जाता है.
वह विशेष रूप से भारत में अनाथ बच्चों को पालने और उनके भरण पोषण का कार्य करती है. वर्ष 2016 में सिंधुताई को समाज सेवा के कार्यों के लिए डीवाई पाटिल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च द्वारा साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था. पद्मश्री से सम्मानित सिन्धुताई सपकाल का 73 वर्ष की उम्र में पुणे(महाराष्ट्र) में 4 जनवरी 2022 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.
भारतीय महिला के लिए जीवन कभी आसान नहीं रहा है.
वह चाहे अमीर या गरीब हो वे इतिहास में निरंकुश समाज के प्रकोप का सामना करती आ रही हैं. सामाजिक पाखंड के संदर्भ में समाज में व्याप्त खामियां कुछ लोगों की मानसिकता के परिणाम हैं जो महिलाओं के जीवन को हर क्षेत्र में दुखी कर रहे हैं. लेकिन, सवाल यह है कि कौन उन्हें अपनी मौजूदा सकल स्थितियों से बाहर लाने जा रहा है. प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के उद्धारकर्ता है महाराष्ट्र से सिंधुताई इस बात का उदाहरण हैं.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | सिंधुताई सपकाल |
जन्म (Date of Birth) | 14 नवंबर 1948 |
मृत्यु (Date of Death) | 4 जनवरी 2022 |
जन्म स्थान (Birth Place) | महाराष्ट्र के वर्धा जिले में |
पिता का नाम (Father Name) | अभिमान जी साथे |
पति का नाम (Husband Name) | श्रीहरी सपकाल |
जाति (Caste) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Profession) | भारतीय समाज सुधारक |
शिक्षा (Education) | कक्षा चौथी |
समाज सुधारक सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक मवेशी चराने वाले परिवार में हुआ था.
गरीब परिवार में जन्म के कारण उन्हें चिंदी (कपड़े के फटे हुए टुकड़े के लिए मराठी शब्द) के कपडे पहनना पड़ते थे. सिंधुताई के पिताजी का नाम अभिमानजी था. उनके पिता सिंधुताई को शिक्षित करने के इच्छुक थे. सिंधुताई के पिता उन्हें मवेशी चराने के बहाने से स्कूल भेजते थे. आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अभिमान जी एक पट्टी (स्लेट) का भी खर्च नहीं उठा सकते थे.
इसलिए वह एक स्लेट के रूप में ‘भड़डी के पेड़’ के पत्ते का उपयोग करते थे. गरीबी, पारिवारिक जिम्मेदारियों और बाल विवाह के कारण सिन्धुताई को शिक्षा छोडनी पड़ी. वह सिर्फ कक्षा चार तक पड़ी थी.
जब सिंधुताई सिर्फ दस साल की थीं, जब उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े व्यक्ति श्रीहरी सपकाल से कर दी गई थी.
उनका जीवन चुनौतियों से भरा था. बाल विवाह के चंगुल का शिकार होने के बाद भी युवा सिंधुताई जीवन के प्रति आशावादी थी. बल्कि, संवेदनशील और दुर्व्यवहार के प्रतिकार में मदद करने के लिए उसका उत्साह बढ़ गया. अपने पति के घर में बसने के बाद, वह जमींदारों और वन अधिकारियों द्वारा महिलाओं के शोषण के खिलाफ खड़ी हुई.
वह नहीं जानती थी कि इस लड़ाई के बाद उसका जीवन और मुश्किल हो जायेगा.
जब वह बीस वर्ष की उम्र में गर्भवती हुई, तो एक क्रोधित जमींदार ने बेवफाई (यह बच्चा किसी और का हैं) की घृणित अफवाह फैला दी, जिसके कारण अंततः सिंधुताई की उसके समुदाय से बाहर निकाल दिया गया.
उसके पति ने उसे ऐसी गंभीर हालत में बुरी तरह से डांटा और घर से निकाल दिया. उसी रात सिंधुताई बेहद निराश और हतप्रभ महसूस कर रही थी, उसने अपनी बेटी को गौशाला में जन्म दिया.
वह किसी तरह अपने पैतृक घर तक पहुँचने के लिए संघर्ष करती रही, लेकिन उसे अपनी माँ से भी ऐसी ही अस्वीकृति का सामना करना पड़ा. सिंधुताई ने अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों और रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगने का सहारा लिया. उसका जीवन अपने और अपनी बेटी के अस्तित्व के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था.
जीवित रहने के लिए संघर्ष की अपनी यात्रा में, सिंधुताई महाराष्ट्र के चिकलदरा में आ गई.
जहां एक बाघ संरक्षण परियोजना की गई, जिसके परिणामस्वरूप 24 आदिवासी गांवों को खाली कराया गया. उसने असहाय आदिवासी लोगों की इस गंभीर स्थिति के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया. उनके लगातार प्रयासों को वन मंत्री ने मान्यता दी, जिन्होंने आदिवासी ग्रामीणों के लिए प्रासंगिक वैकल्पिक पुनर्वास व्यवस्था बनाने का आदेश दिया.
इन जैसी स्थितियों ने सिंधुताई को जीवन की कठोर वास्तविकताओं जैसे कि गाली, गरीबी और बेघरों से परिचित कराया.
इस समय के दौरान वह अनाथ बच्चों और असहाय महिलाओं की संख्या से घिर गईं और समाज में बस गईं. सिंधुताई ने इन बच्चों को गोद लिया और उनकी भूख मिटाने के लिए अथक परिश्रम किया. अपनी बेटी के प्रति खुद को आंशिक होने से बचाने के लिए सिंधुताई ने अपनी बेटी को अपने गोद लिए हुए बच्चों की खातिर पुणे में एक ट्रस्ट में भेज दिया.
कई सालों तक कड़ी मेहनत करने के बाद सिंधुताई ने चिकलदरा में अपना पहला आश्रम बनाया.
उसने अपने आश्रमों के लिए धन जुटाने के लिए कई शहरों और गांवों का दौरा किया. अब तक, उन्होंने 1200 बच्चों को गोद लिया है, जो प्यार से उन्हें ‘माई’ कहकर बुलाते हैं. उनमें से कई अब सम्मानित स्थानों पर डॉक्टर और वकील के रूप में काम कर रहे हैं.
सिंधुताई सपकाल की जीवन गाथा सभी अद्भुत भाग्य और दृढ़ संकल्प के बारे में है.
उसने उल्लेखनीय रूप से प्रदर्शित किया है कि कैसे कठिनाइयाँ आपमें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हैं. स्वतंत्र भारत में पैदा होने के बाद भी, उन्होंने भारतीय समाज में मौजूद सामाजिक अत्याचारों का शिकार किया था. अपने जीवन से सबक लेते हुए, उन्होंने महाराष्ट्र में अनाथ बच्चों के लिए छह अनाथालय बनाए, उन्हें भोजन, शिक्षा और आश्रय प्रदान किया. उनके द्वारा चलाए जा रहे संगठनों ने असहाय और बेघर महिलाओं की भी सहायता की.
अपने अनाथालयों को चलाने के लिए सिंधुताई ने पैसों के लिए कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया बल्कि उसने सार्वजनिक मंचों पर प्रेरक भाषण दिए और समाज के वंचितों और उपेक्षित वर्गों की मदद के लिए सार्वजनिक समर्थन मांगा.
अपने एक अविश्वसनीय भाषण में सिन्धुताई ने अन्य लोगों को प्रेरणा प्रदान करने के लिए हर जगह अपनी कहानी प्रसारित करने के लिए जनता से अपनी इच्छा व्यक्त की. उनकी लोकप्रियता ने कभी भी उसके व्यक्तित्व पर काबू नहीं पाया. उसकी खुशी उसके बच्चों के साथ होने, उनके सपनों को साकार करने और उन्हें जीवन में बसाने के बारे में है.
यह महिलाओं के लिए समर्पित सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है.
अनंत महादेवन की 2010 की मराठी फिल्म “मी सिंधुताई सपकाल” सिंधुताई सपकाल की सच्ची कहानी से प्रेरित एक बायोपिक है.
इस फिल्म को 54 वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुना गया था.
इसे भी पढ़े :